हे प्रिय तुमको मुक्त किया अब
सारे बंधन पाश से,
कोई ऋण न शेष तेरा
इस एक अटल विश्वास से,
वो बीता कल एक स्वप्न सरीखा
जिसमे तुमको पाया था
जब से जागे उस स्वप्न से हम
जाना वह बस एक साया था
रात पड़े अंधेरो में जब साया भी साथ नहीं देता
वह प्रेम ही कैसा प्रेम है, हे प्रिय
जो हाथ को हाथ नहीं देता
कही भटक न जाऊं अंधेरो में
बस एक दिए की आस में
तोड़ दिया वह स्वप्न भी हमने ऐसे ही आभास से,
हे प्रिय तुमको मुक्त किया अब
सारे बंधन पाश से..........
--आपकी मौलश्री
hey dear... beautiful poetry. really touched.
ReplyDeletewhat about your pen name- SAMVEDNA.. i thought u wrote all ur poems under that name?..
waiting for ur nxt blog!!
thanx for ur valuable comment dear,
ReplyDeleteas far as my pen name is concerned, no more faking of names, m real and moulshree now(winks)...