Friday, October 8, 2010

तेरी यादें

शब्दों के कोलाहल में, बातों के साज सजाने में,
जैसे दम सा घुटता है मेरा आज ज़माने में,
यूँ ही बैठे खोली जब यादों की पोटली,
एक पुराना पत्र मिला है आज मुझे अनजाने में,
धुंधले अक्षर धुंधली यादें, धुंधला सा एक साया था,
जब तुम बसते थे मेरे मन में, एक दौर ऐसा भी आया था,
सोचो तो कैसे दिन थे वे, कैसी वो सारी रातें थी
निश्छल मन, निश्चल बंधन, निश्छल वो सारी बातें थी,
सारी खुशियाँ मिल जाती थी एक तेरे आ जाने में
एक पुराना पत्र मिला है आज मुझे अनजाने में
कैसे तुझको पत्र लिखे थे, खुद ही लिख कर फाड़ दिए थे,
जीवन के सारे सुख दुःख तो, पत्रों में तुझ पर वार दिए थे,
अम्मा के मन में इच्छाएं थीं, बाबा की आँखों में सपना था,
उन सपनों में जी थी मै पर तू भी तो मेरा अपना था,
वो सारी बातें, यादें, सपने भरे आँखों के पैमानों में,
एक पुराना पत्र मिला है आज मुझे अनजाने में.......

                                                    ..........आपकी मौलश्री

                               

3 comments:

  1. behud khoobsurat rahcna.....! bahut sadgi se aap ek haseen daur ki baaton ..aur unki kathor yaadon ko keh gayi hein...! bahut achcha laga aapki ye rachna padhkar...! :)

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  2. smriti ji.. bohot bohot dhanyawad apke is mulyawan comment ke liye..mere dil ki baat apke dil tak pohoch gayi, mere likhne ka uddeshya poora hua...

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